रविवार, 5 जुलाई 2015

महात्मा गाँधी के विचारों का हिन्दी उपन्यास पर प्रभाव
कहा गया है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. किसी भी विशिष्ट देशकाल की भौगोलिक परिस्थितियाँ, सामाजिक विचारधाराएँ, राजनीतिक उथल-पुथल आदि कहीं न कहीं  उस काल के साहित्य को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित अवश्य करते हैं. यहाँ तक की प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, अकाल आदि का भी प्रभाव हमारे साहित्य पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है.  सम्पूर्ण विश्व के साहित्य का आकलन किया जाये तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लगभग हर समुदाय, समाज, देश का साहित्य कहीं न कहीं वहाँ के सामाजिक विचारधाराओं से प्रभावित हुआ है और कुछ हद तक उस साहित्य की दिशा भी परिवर्तित हुई है.  इस परिवर्तन के पीछे उस देशकाल के दार्शनिक, विचारक, चिन्तक, उपदेशक, भविष्यवक्ता आदि का प्रमुख योगदान मिलता है. जहाँ मार्क्स, फ्रायड, डार्विन, विवेकानंद आदि विचारकों ने गत सदी में सोचने-समझने की शैली को बदल दिया वहीं सार्त्र, सीमोन, गाँधी, अम्बेडकर, नेहरु ने अपने तरफ से विश्व को आधुनिक बनाने का प्रयास किया और इनकी विचारधारा से एक हद तक हमारा  साहित्य भी प्रभावित हुआ है. यदि भारतीय साहित्य की बात की जाये तो यह रामचंद्र से लेकर कालिदास,तुलसीदास, गाँधी, नेहरु तक के विचारों और दर्शन से प्रभावित दिखाई पड़ता है.
महात्मा गाँधी हमारे देश के राष्ट्रपिता हैं और हमारे देश की आजादी की लड़ाई में उनके और उनकी विचारधाराओं का अप्रतिम योगदान रहा है. सन १९१५ ई. में उनके भारत लौटने के पश्चात  देश की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति में कई परिवर्तन हुए. नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन जैसी गतिविधियों ने देश की सोच और विचारधारा में एक क्रांति बहाल की और देश में एक चेतना की लहर दौड़ गई. उनके सत्य, अहिंसा, न्याय, ब्रह्मचर्य, दर्शन आदि सिद्धांतों की मीमांसा की गई और उनपर आधारित साहित्य भी रचे गये. गाँधी जी की विचारधारा का प्रभाव हिन्दी साहित्य के लगभग हर विधा पर सामान रूप से पड़ा. चाहे वो छायावादी काव्य हो या प्रेमचंदयुगीन कहानियाँ और नाटक या फिर प्रमुख ऐतिहासिक और सामाजिक कालजयी उपन्यास, सभी गाँधी रंग में रंगे दिखायी पड़ते हैं.    
हिन्दी उपन्यासों पर गाँधी जी के विचारों के प्रभाव को सहजता से रेखांकित किया जा सकता है. गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित उपन्यासकारों में प्रेमचंद, जैनेन्द्र कुमार, सियारामशरण गुप्त, गिरिराज किशोर, यशपाल आदि के नाम प्रमुख हैं. इन उपन्यासकारों द्वारा महात्मा गाँधी के विचारों एवं जीवनदृष्टि के आधार पर औपन्यासिक चरित्रों का प्रतिरूप बनाया गया, उनके जीवन की घटनाओं का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत किया गया, उनके आंदोलनों के चित्र दर्शन के साथ उनके सिद्धांतों से जुड़ी कथाओं की रचना की  गयी.
प्रस्तुत विषय की चर्चा करने के संदर्भ में हमारे मानस पटल पर एक प्रमुख नाम हमारे कालजयी उपन्यासकार प्रेमचंद का आता है. प्रेमचंद गाँधीवादी आदर्श जीवन प्रणाली तथा सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे. व्यावहारिक जीवन में उन्होंने गाँधी जी के रचनात्मक कार्यों को पूर्णतः स्वीकार किया. प्रेमचंद के उपन्यासों पर गाँधीवादी जीवन का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. उनके गोदान पूर्व लगभग सभी उपन्यास गाँधी दर्शन से प्रभावित नजर आते हैं जिनमें प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, कर्मभूमि आदि प्रमुख हैं. गाँधी युग में प्रेमचंद का राष्ट्रीय प्रेम का स्वर अधिक सशक्त हुआ और वे अपने आप को महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व के जादुई प्रभाव से बचा न सके . ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास में  प्रेमचंद लखनपुर गाँव में एक आदर्श राज की स्थापना करते हैं जहाँ सत्य, प्रेम, अहिंसा त्याग की महत्ता को निरुपित किया गया है और साथ ही साथ हृदय परिवर्तन के सिद्धांत की भी सिफारिश की गई है. गाँधी जी की भांति प्रेमचंद भी यह स्वीकारते हैं कि किसानों और जमींदारों के सम्बन्ध प्रेमपूर्ण हो सकते हैं. उनके दूसरे उपन्यास ‘रंगभूमि’ का नायक सूरदास तो गाँधी का प्रतिरूप दिखायी पड़ता है. सरकार और जनसेवक के विपक्ष में सूरदास की अहिंसक लड़ाई का चित्रण प्रेमचंद ने अपने इस उपन्यास में किया है. ‘कायाकल्प’ में दृष्टिगत होता है कि मनुष्य ऐश्वर्य और विलास के पीछे किस तरह पतित हो जाता है? वहीं ‘गबन’ में विलासिता और भौतिकवाद के पीछे पड़कर पर्यवसान की ओर संकेत कर सेवा और त्याग की महिमा गुणगान किया गया है. ‘कर्मभूमि’ में गाँधी जी के व्यवहारिक कार्यक्रमों का गाँव में प्रचार चित्रित किया गया है और सूत-कताई, बुनाई, हरिजनोद्धार, शराबबंदी आदि को  कथातत्व में प्राथमिकता दी गई है. पात्रों का हृदय परिवर्तन होना, उनके द्वारा अपनी संपत्ति का दान कर सेवा मार्ग अपना और नारियों का राष्ट्र सेवा के लिये तत्पर होना गाँधी युगीन प्रभाव को अभिलक्षित करता है. प्रेमचंद की साहित्य दृष्टि  गोदान तक आते आते थोड़ी परिवर्तित तो जरुर होती  है पर उसमें हृदय परिवर्तन, जन सेवा जैसी  भावनाओं का लोप नहीं होता.
गाँधीवादी विचारधारा से प्रेरित उपन्यासकारों में दूसरा प्रमुख नाम सियारामशरण गुप्त जी का आता है. इनका प्रथम उपन्यास “गोद” १९३२ ई  में प्रकाशित हुआ जिसमें गाँधीवादी जीवन दर्शन की आध्यात्मिक चेतना व्यक्त हुई है. गुप्त जी प्रेमचंद युगीन उपन्यासकार हैं और इस युग की व्यापक मनोभूमि गाँधीवादी ही थी. उनके उपन्यासों पर गाँधीवाद का बाह्य प्रभाव नहीं है, परन्तु उनके व्यक्तित्व में गाँधीवाद के सिद्धांत-पक्ष का पूर्णतः पालन हुआ है. सियारामशरण गुप्त के तीन उपन्यासों ‘गोद’, ‘अंतिम आकांक्षा’ और ‘नारी’ में गाँधी के अध्यात्म पक्ष को प्रधानता मिली है. गाँधीवाद अध्यात्मिक स्तर पर हृदय परिवर्तन और आत्मपीड़न के सिद्धांत को मान्यता देता है. ‘गोद’ में किशोरी की व्यथा से शोभाराम का हृदय परिवर्तन होता है और वह समाज के सारे बंधन तोड़ कर उसे स्वीकार करता है.  ‘अंतिम आकांक्षा’ में रामलाल जैसे सामान्य व्यक्ति के हृदय की स्वच्छता को रेखांकित किया गया है. नायक निम्न-जाति का सत्यनिष्ठ व्यक्ति है जिसके हाथ से एक डाकू की हत्या हो गयी है. वह समाज के अन्यायपूर्ण बंधनों को सहकर अपनी मानवीय श्रेष्ठता का परिचय देता है. वहीं ‘नारी’ में जमुना अपने पुत्र से कहती है –“ सह ले इसे सह ले. कमजोर क्यों पड़ता है? जितना ही अधिक सह सकेगा, उतना ही तू बड़ा होगा.” इस प्रकार सियारामशरण गुप्त के उपन्यास के पात्रों के कथन में गाँधी जी के सन्देश की आहट स्पष्ट मिलती है.   
गाँधीवाद से प्रभावित लेखकों में  एक महत्वपूर्ण नाम जैनेन्द्र का आता है. जैनेन्द्र भी गाँधीवाद के अध्यात्मपक्ष पर बल देते हुए आत्मपीड़न द्वारा हृदय परिवर्तन में विश्वास करते हैं. “परख” में गाँधीवाद का प्रभाव ‘सत्यधन’ पर बाह्य रूप में पड़ता है वही ‘बिहारी’ का व्यक्तित्व पूर्ण रूप से गाँधीवाद से अनुप्राणित जान पड़ता है. वहीं   ‘सुखदा’ , ‘सुनीता’ , ‘व्यतीत’, ‘जयवर्धन’ और ‘विवर्त’ में जैनेन्द्र  नारी के परपुरुष से प्रेम करने के मनोवैज्ञानिक समस्या का समाधान गाँधीवादी दृष्टिकोण से हृदय परिवर्तन के सिद्धांत द्वारा खोजने का प्रयास करते हैं. उन्होंने अहम की निस्सारता दिखाकर समर्पण द्वारा स्व और पर में अभेद सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की है. इसीलिये उनके उपन्यासों में कामपीड़ा और समर्पण का चित्रण कर अहम् का विसर्जन करने किया गया है. वैसे, जैनेन्द्र के उपन्यासों में गाँधीवाद का प्रभाव का निरूपण कुछ सीमा तक ही मिलता है.
उपरोक्त उपन्यासकारों के आलावा कई अन्य नाम और भी हैं जिनके उपन्यासों पर आंशिक या छिटपुट रूप से गाँधीवाद का असर देखने को मिलता है. ‘अमृतलाल नागर’ के उपन्यास ‘बूँद और समुद्र’ प्राचीन रूढ़ियों के खोखलेपन, जातिभेद आदि पर प्रकाश डाला गया है साथ ही उपन्यास का सूत्रधार बाबा रामजी पूर्णतः गाँधीवादी और सर्वोदयी के रूप में चित्रित हुआ है. फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास मैला आँचल का पात्र बावनदास भी गाँधीवादी व्यक्ति है जो सर्वोदय और स्वराज की बातें करता है. इस उपन्यास के पूरे कथानक में महात्मा गाँधी (गनही महातमा) का जिक्र कई बार हुआ है. कुछ ऐसे उपन्यास हैं जिनका उपजीव्य सन् १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन बना है . इनमें ‘बयालीस’ (प्रतापनारायण मिश्र), ‘श्वेतपत्र’( विवेकीराय), ‘देशद्रोह’ और ‘मेरी तेरी उसकी बात’ (यशपाल), ‘बीज’ (अमृतराय), ‘जिच’ (मन्मथनाथ गुप्त), ‘बलिदान’ (रघुवीर शरण मिश्रा), ‘सीधी सच्ची बातें’ (भगवती चरण वर्मा) आदि  प्रमुख हैं. इनके अलावा गिरिराज किशोर द्वारा रचित ‘पहला गिरमिटिया’ आज के परिपेक्ष्य में एक उत्कृष्ट उपन्यास है जो महात्मा गाँधी जी के जीवन से प्रभावित है. इसमें किशोर जी ने महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका में साम्राज्यवादी  शक्तियों से संघर्ष के इतिहास को उपन्यास का कथ्य बनाया है.
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि गाँधी जी का प्रभाव केवल उनके युग में ही नहीं अपितु आज के आधुनिक युग के उपन्यासकारों पर भी सहजता से देखने को मिलता है. गाँधी जी एक युग पुरुष हैं और उनके कृत्य साहित्य रचना को आने वाले भविष्य में भी दिशा निर्देशन देते रहेंगे और भविष्य में उनके प्रभाव से पूर्ण साहित्य की रचना होती रहेगी.

संदर्भ –
                  हिन्दी का गद्य-साहित्य – डॉ रामचंद्र तिवारी
                  हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास – रामस्वरूप चतुर्वेदी
                  रंगभूमि – प्रेमचंद
                  नारी – सियाराम शरण गुप्त
                  मैला आँचल – फणीश्वर नाथ रेणु
                  पहला गिरमिटिया- गिरिराज किशोर


सुस्मित सौरभ


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